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भारत एक कृृषि प्रधान देश है। इसके समुचित विकास के लिये कृृषि को आधुनिक एवं स्वाबलम्बी बनाने की आवश्यकता है। कृृषि उत्पादन के विभिन्न उपादानों में बीज सबसे प्रमुख उपादान है क्योंकि इसकी शुद्धता/अशुद्धता पर ही उत्पादन निर्भर करता है। शुद्ध एवं उच्च गुणवत्ता वाले बीज जहाॅं उत्पादन को 20-25ः बढ़ा सकते हैं, वहीं अशुद्ध बीज अन्य उपादानों के सुलभ होने के पश्चात्् भी फसल उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख खाद्यान्न फसलों की उत्पादकता में वृृद्धि मुख्यतः इन फसलों के उन्नत प्रभेदों की उच्च गुणवत्ता के कारण हुआ है। दुर्भाग्यवश बीज के महत्व को समझने के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर उन्नत प्रभेदों के बीजों का प्रतिस्थापन दर धान के लिये 15ः और गेहॅॅूं के लिये लगभग 9ः था। उत्पादन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये बीज प्रतिस्थापन दर बढ़ाने की आवश्यकता थी। उन्नत प्रभेदों के बीजों का समुचित मात्रा में उपलब्ध न होना, इसके अनेक कारणों में से एक प्रमुख कारण रहा है। अतः आवश्यकता थी कि बीज उत्पादन कार्यक्रम को सरकारी/कृृषि विश्वविद्यालय एवं ग्राम स्तर पर बीज उत्पादकों का समूह बना कर वृृहत स्तर पर चलाया जाय, ताकि क्षेत्र विशेष की आवश्यकताओं को पूर्ति करने के साथ-साथ कृृषि उत्पादन को बढ़ाया जा सके।
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